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लेखनी प्रतियोगिता -17-Jan-2024 ज़ब तक सास ज़ब तक आस



शीर्षक = ज़ब तक सांस, ज़ब तक आस




मयंक काफ़ी देर से बस स्टैंड पर खड़ा बस का इंतज़ार कर रहा था लेकिन बस थी की आने का नाम ही नही ले रही थी ऊपर से गर्मी भी इतनी की जला कर राख किए दे रही थी बस स्टैंड भी सुनसान ही पड़ा था शायद गर्मी की ही वजह रही होगी।

इस कंपनी में भी उसे निराशा ही मिली उन्होंने भी वही कह कर भेज दिया जो की और कम्पनी वालो ने कहा था कि फ़ोन करके बता देंगे पता नही जॉब कब लगेगी अब तो सारी सेविंग्स भी ख़त्म होने लगी है वो इसी उधेड़ बुन में वहाँ खड़ा था कि अचानक उसके पास एक ऑटो आकर रुकी उसने गर्दन बाहर निकाल कर पूछा " साहब ! कब तक गर्मी में खडे रहकर अपना पसीना निकालते रहोगे आओ मैं तुम्हे छोड़ देती हूँ शायद तुम्हे मालूम नही बसों की हड़ताल है "


ऑटो वाली एक अधेड उम्र की औरत थी। बसों की हड़ताल के बारे में सुन कर मयंक थोड़ा चौकते हुए बोला " ओह गॉड नही, ज़ब ही तो कहू कोई बस क्यू नही आ रही है और बस स्टैंड इतना खाली क्यू है "


"जी साहब कुछ गर्मी की वजह है तो कुछ बसों की हड़ताल की वजह, चलिए मैं छोड़ देती हूँ कहा जाना है आपको " ऑटो वाली ने कहा


"माफ कीजियेगा, दरअसल मैं ऑटो का किराया दे नही सकता, मेरी अभी कुछ महीने पहले जॉब छूट गयी है यहां एक इंटरव्यू के लिए आया था लेकिन यहां भी वही जवाब मिला जिसे मैं बहुत दिनों से सुनता आ रहा हूँ आप जाइये मैं किसी तरह घर पहुंच जाऊंगा " मयंक ने कहा


"कितनी दूर है आपका घर साहब " ऑटो वाली ने पूछा

"ज्यादा तो नही बस से एक घंटा लगता है, काफ़ी रूकती हुई जाती है इसलिए " मयंक ने कहा

"बैठ जाइये साहब जितने बस में देते उसने दे दीजियेगा इतनी गर्मी में कब तक खडे रहेंगे मेरा भी आखिरी चककर है मैं भी घर जाउंगी इसके बाद " ऑटो वाली ने कहा

मयंक ने थोड़ा सोच विचार किया इधर उधर देखा दूर तक सिर्फ ख़ामोशी के कुछ नजर नही आ रहा था पता नही घर कैसे पहुँचूँगा इसी के चलते वो उस ऑटो में बैठने लगा लेकिन तब ही उसे उस ऑटो में एक और शख्स की भी मौजूदगी हुई जिसे देख वो थोड़ा डर सा गया

एक अजीब सा दिखने वाला बुड्ढा सा आदमी उस ऑटो की पिछली सीट पर बैठा था मयंक कुछ कह पाता तब ही वो ऑटो वाली बोल पड़ी " घबराइए नही साहब, वो कुछ नही करेगा आप बैठ जाइये "

"क,, क,,, कौन है ये " मयंक ने घबराते हुए पूछा

ठीक है बताती हूँ, वरना आपको लगेगा की मैं कोई लूट पाट करने वाली औरत हूँ, जो लोगो की मजबूरी का फायदा उठा कर अपनी ऑटो में बैठा कर उन्हें लूट लेती हूँ

"नही,, नही,,, मेरा वो मतलब नही था मैं तो बस पूछ रहा था कि कही कोई दूसरी सवारी हो जिसे जल्दी कही जाना हो " मयंक ने ऑटो वाली को बीच में ही टोकते हुए कहा

"नही साहब कोई सवारी नही है, मेरा आदमी है " ऑटो वाली ने कहा और फिर ऑटो स्टार्ट कर दी

मयंक बस उस आदमी को देख रहा था जो उसके सामने बैठा था बड़ा ही अजीब सा बर्ताव था उसका मानो अपने होश हवास खो चुका हो, मुँह में से लार टपक रही थी गर्दन एक और झुकी हुई थी


"क्या हुआ साहब? कोई परेशानी है क्या? घबराये नही वो आपको कुछ नही कहेगा " ऑटो वाली ने कहा थोड़ा गर्दन घुमा कर देखते हुए


"नही, नही ऐसी कोई बात नही है, आप ध्यान से ऑटो चलाओ मैं ठीक हूँ " मयंक ने कहा

"ठीक है साहब "ऑटो वाली ने कहा और ऑटो चलाने लगी

मयंक के मन में कुछ सवाल से उठने लगे थे उस आदमी की हालत को देख कर वो तो किसी अस्पताल में भर्ती होने जैसा लग रहा था और ये इसे अपनी ऑटो में घुमाये फिर रही है मयंक से रहा नही गया और उसने पूछ ही लिया

" इन्हे क्या हुआ है? आप इन्हे कहा लेकर जा रही हो, क्या ये बीमार है "

ये सुन ऑटो वाली ने अपनी गर्दन हलके से उसकी और घुमाई और बोली "  ये बीमार नही है इन्हे मैं अपने साथ ही रखती हूँ, बस इनकी थोड़ी दिमागी हालत बिगड गयी है लेकिन मुझे उम्मीद है ये बहुत जल्द ठीक हो जायेंगे डॉक्टर भी कहते है ये जल्द ठीक हो जायेंगे "


"सुन कर बुरा लगा, भगवान ऐसा ही करे लेकिन इनकी हालत कैसे बिगड गयी और आप इन्हे किसी अस्पताल या घर पर क्यू नही रखती हो इस तरह तो ये और बीमार हो जायेंगे " मयंक ने कहा।


"नही साहब घर पर नही रख सकती और न ही अस्पताल में भर्ती करा सकती हूँ, मुझे इन्हे अपने साथ रखना ही अच्छा लगता है ये पास होते है तो मन में एक आस सी जगी रहती है मैं अब इन्हे खुद से दूर नही जाने दूँगी " ऑटो वाली ने उदास होते हुए कहा


"ठीक है, लेकिन इस तरह तो बहुत सी सवारी तुम्हारी ऑटो में नही बैठती होगी, तुम्हारा नुकसान नही होता है " मयंक ने पूछा


"साहब जितनी कमाई मेरी किस्मत में लिखी होती है वो मुझ तक कैसे न कैसे पहुंच ही जाती है, मैं इतना कमा लेती हूँ इनका अपना और बच्चों का खर्चा उठा लेती हूँ और मुझे क्या चाहिए " ऑटो वाली ने कहा

उसके जवाब ने मयंक को खामोश कर दिया लेकिन फिर भी उसने एक प्रश्न और किया " इनकी हालत इस तरह कैसे हुई कोई एक्सीडेंट हुआ था क्या? "

ऑटो वाली ने ये सुन एक गहरी सास ली और बोली " जी साहब  एक बहुत बुरा हादसा था या कह लो एक दौर था जो अब गुजर गया मेरे सब्र का इम्तेहान था वो जो शायद आधा तो पूरा हो चुका है और आधा एक दिन जरूर पूरा हो जाएगा ज़ब तक मुझमे सास है ज़ब तक मुझे आस भी है कि ऐसा जरूर होगा "

मयंक ने उसकी व्यथा जान ली थी कि वो जरूर किसी बुरे हादसे का शिकार हुई थी शायद उसके पति का कोई एक्सीडेंट वगैरह हुआ होगा जिसकी रिकवरी होने में समय लग रहा है उसने पूछ ही लिया " क्या कोई एक्सीडेंट वगैरह हुआ था? "


साहब आप पूछ रहे हो तो बता देती हूँ वैसे मैं अब उस हादसे को याद नही करना चाहती दरअसल हमारा प्रेम विवाह था ये ऑटो जो मैं चला रही हूँ इसकी है पहले ये चलाया करता था मैं इसकी ऑटो में बैठ कर लोगो के घरों में काम करने जाया करती थी अपनी माँ के साथ


पता ही नही चला कि कब हम दोनों को प्यार हो गया और एक दिन इसने मुझसे कह डाला की ये मुझे अपनी दुल्हन बना कर अपने घर लेकर जाना चाहता है मुझे यूं इस तरह दूसरों के घरों में जाकर साफ सफाई करना इसे पसंद नही था

मुझे भी ये अच्छा लगता था और फिर हम दोनों ने घर वालो के मर्जी के साथ अपनी शादी रचा ली ये किराये की खोली में रहता था इसके माँ बाप  बहुत साल पहले भगवान को प्यारे हो गए थे एक बहन थी जो की गांव में ही ब्याही हुई थी और गांव में कही रहती थी लेकिन मेरे लिए  इसकी खोली में रहना कोई बड़ी बात नही थी मैं भी किराये के घर पर ही रहती थी

ये ऑटो चला कर इतना कमा लेता था की घर खर्च आराम से निकल जाता था मुझे भी कभी कमी नही लगी की मुझे काम करना चाहिए और न ही इसे पसंद था मेरा दूसरों के घरों में जाकर काम करना ये मुझे अपना घर सजाने के लिए ही ब्याह कर लाया था


दिन ढलते गए हमारी जिंदगी में नया मेहमान आया हमारा बेटा उसके कुछ साल बाद एक बेटी भी दी भगवान ने हमारा परिवार बहुत खुश हाल परिवार था किसी भी चीज को लेकर कोई ज्यादा चिक चिक नही थी


सब कुछ अच्छा जा रहा था मेरी एक ख्वाहिश थी कि मैं पूरे परिवार के साथ केदारनाथ धाम बाबा के दर्शन कर आऊ मेरी बात ज़ब इसे पता लगी तो इसने उसे हकीकत में बदल दिया और पूरे परिवार के साथ हमें बाबा के दर्शन कराने ले गया


लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था वहाँ आयी प्रलय ने मेरा सब कुछ उजाड़ दिया बच्चे और मैं तो किसी तरह बच निकले थे लेकिन उस बाढ़ में मैंने इन्हे खो दिया था न जाने कितनो के अपने उस बाढ़ में बह गए थे उसमे मेरा पति भी शामिल था

कई दिनों तक सर्च ऑपरेशन चला लेकिन गुमे हुए लोगो का कुछ पता नही चला अगर चल भी रहा था तो उनकी लाशें मिल रही थी


मेरा मन नही मानता था कि मेरा रवि मुझे छोड़ कर चला गया है हफ्तों रुक कर वहाँ इंतज़ार किया कि शायद वो किसी रोज़ वापस आ जाये हमें सही सलामत देख हमारे सीनो से लग जाये


पर अफ़सोस ऐसा नही हुआ और न चाहते हुए भी हमें घर आना पड़ा लेकिन मुझे उम्मीद थी कि ये जिन्दा है एक आस थी कि ये जहाँ कही भी है सलामत है, मेरे साथ इतना बड़ा अन्याय नही हो सकता


न जाने कितनी बार मैं जबरदस्ती वहाँ जा पहुंची ज़ब कभी भी किसी के मिलने की खबर मिलती आस पास के गावों में भी मैंने इनकी तस्वीरे बाट दी थी कि शायद कही किसी रोज़ कोई फ़ोन आ जाये कि तुम्हारा पति ज़िंदा है


लेकिन कुछ फायदा नही हुआ सिर्फ निराशा ही हाथ लगी लेकिन फिर भी मैंने अपनी चलती सासों की तरह अपनी आस नही छोड़ी घर की बाघ डोर जो गिर रही थी उसे अपने हाथों में लिया क्यूंकि जानती थी ज़ब कभी भी ये लोट कर आएंगे तो इन्हे मायूस नही होना पड़ेगा कि मेरे बिना मेरे बीवी बच्चों का हाल बेहाल हो गया

इनकी इस टैक्सी में ही इनका आप देख कर इसे ही चलाना शुरू कर दिया इन्होने ही मुझे सिखाई थी टैक्सी चलाना शुरू शुरू काफ़ी डर भी लगा एक औरत होकर ये काम करते हुए लोगो ने भी बहुत बातें बनाई लेकिन मुझे अपना घर देखना था उसमे भूख से बिलख रहे बच्चों को दो वक़्त की रोटी खिलाना थी अपने पति की अमानत की हिफाज़त करना थी इसलिए टैक्सी को ही अपना रोजगार बना लिया और एक आस भी थी कि एक दिन इसका असली मालिक लोट कर आएगा

सुबह होती शाम हो जाती, फिर दिन निकल आता दिन हफ्ते बन जाते और हफ्ते महीने और महीने मिल कर साल लेकिन अपने पति की वापसी की आस नही टूटी ये आँखे इसी आस में रहती की एक न एक दिन ये उन्हें जरूर देखेंगी


और फिर मेरे सब्र का इम्तेहान पूरा हुआ और मुझे एक कॉल आयी की एक आदमी मिला है जिसकी दिमागी हालत तो अब ठीक नही न जाने उस पर क्या क्या गुजरी है लेकिन उसकी शक्ल आपकी दी हुई तस्वीर से मिलती है शायद ये आपके पति ही है

उसके बाद मैं इन्हे यहां ले आयी थोड़ा बहुत इलाज हुआ डॉक्टर ने बताया भी कि ये बहुत जल्द ठीक हो जायेंगे लेकिन इनका ध्यान बहुत अच्छे से रखना होगा घर भी नही बैठ सकती थी और इन्हे घर पर अकेला भी नही छोड़ सकती थी क्यूंकि कभी कभी इनपर दौरे पड़ते है जिसकी वजह से ये सब कुछ भूल जाते है और लोगो को मारने लगते है किसी को कोई नुकसान न हो जाये इसलिए मैं इन्हे अब अपने साथ ही लेकर चलती हूँ जितना भी मिल जाता है काफ़ी है बस इतनी सी थी ये दास्तान

लीजिये आपकी मंजिल भी आ गयी जहाँ आपने बताया था ऑटो वाली ने कहा चहरे पर मुस्कान सजा कर

मयंक उसकी वो दास्तान सुन सकते में रह गया उसने उस आदमी की और देखा जिसकी आँखों में नमी सी दिखाई दे रही थी शायद वो सब बातें सुन रहा था

वो ऑटो से उतरा और किराया देकर उसका धन्यवाद और उसकी बहादुरी की दाद देकर वहाँ से जा ही रहा था तब ही ऑटो वाली ने उसे रोकते हुए कहा " साहब आप भी ज्यादा परेशान न हो नौकरी को लेकर आज नही तो कल मिल ही जाएगी ज़ब तक सास है ज़ब तक हर चीज की आस रखनी चाहिए उस चीज को हम तक पहुंचाने का काम ईश्वर का है वो कैसे न कैसे करके हमें उस तक पंहुचा ही देता है "


मयंक ने एक मुस्कान सजायी और वहाँ से चला गया, शीला भी मुस्कुराती हुई अपने पति की और देख कर वहाँ से ऑटो स्टार्ट कर चली जाती है।



समाप्त.....
प्रतियोगिता हेतु....




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9 Comments

Milind salve

21-Jan-2024 07:37 PM

Very nice

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Rupesh Kumar

21-Jan-2024 04:55 PM

Nice

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Madhumita

21-Jan-2024 04:39 PM

Nice

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